Saturday 18 August 2012

राइट ब्रदर्स wright brothers

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  राइट ब्रदर्स{ wright brothers}  यानी ऑरविल राइट , जिन्होंने अपने भाई विल्बर के साथ मिलकर पहला विमान बनाया। चलिये तो  जानते हैं कैसा था पहला विमान और कैसी थी पहली उडान की रोचक कहानी..
पतंगों को देखकर आसमान में उडने की चाहत पैदा हुई, जो ग्लाइडर से शुरू होकर सुपरसॉनिक विमानों एवं अंतरिक्ष यानों तक आ पहुंची है। ऑरविल और विल्बर बंधुओं ने पहले स्वचालित विमान का आविष्कार किया। इसका नाम था फ्लायर। इसकी पहली सफल उडान 17 दिसंबर 1903 को अमेरिका में भरी गई ।
राइट बंधुओं ने केवल हाईस्कूल तक शिक्षा पाई थी। उनके पास कोई तकनीकी योग्यता नहीं थी। अपने काम के लिए आवश्यक धनराशि भी नहीं थी। हालांकि वे हमेशा यंत्रों में रुचि लेते थे। वे साइकिल मरम्मत की दुकान चलाते थे। उडने के विषय में चल रहे प्रयोगों के बारे में किताबों में पढकर इस बारे में जानने की रुचि उन्हें भी हुई। उन्होंने पक्षियों की उडान का अध्ययन करने के साथ-साथ तब तक बन चुकी उडान मशीनों का भी अध्ययन किया।
राइट बंधुओं ने सबसे पहले एक ग्लाइडर बनाया, जिसे वे पतंग की तरह उडाते थे। इसे लीवरों की सहायता से जमीन पर रस्सियां बांधकर नियंत्रित किया जाता था। उन्होंने यह भी सीख लिया कि हवा में मशीन को कैसे चलाया जा सकता है। इसके बाद एक मानव युक्त ग्लाइडर उन्होंने इसमें करीब दो हजार बार उडान भरी। इसमें सबसे लम्बी उडान 600 फीट की दूरी तक थी।
1903 में उन्होंने तरल ईधन से चलने वाली मोटर बनाई और उसके परीक्षण के लिए पुन: नॉर्थ कैरोलिना गए। मानव इतिहास में यह पहली उडान थी जिसमें एक मशीन ने स्वयं गति करके हवा से भारी विमान को मानव सहित उडा लिया।

Friday 27 July 2012

"Ego of Art " means "kill Talent"

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      एक पढ़ा-लिखा दंभी व्यक्ति नाव में सवार हुआ। वह घमंड से भरकर नाविक से पूछने लगा, ‘‘क्या तुमने व्याकरण पढ़ा है, नाविक?’’

नाविक बोला, ‘‘नहीं।’’

दंभी व्यक्ति ने कहा, ‘‘अफसोस है कि तुमने अपनी आधी उम्र यों ही गँवा दी!’’

थोड़ी देर में उसने फिर नाविक से पूछा, “तुमने इतिहास व भूगोल पढ़ा?”

नाविक ने फिर सिर हिलाते हुए नहींकहा।

दंभी ने कहा, “फिर तो तुम्हारा पूरा जीवन ही बेकार गया।

मांझी को बड़ा क्रोध आया। लेकिन उस समय वह कुछ नहीं बोला। दैवयोग से वायु के प्रचंड झोंकों ने नाव को भंवर में डाल दिया।

नाविक ने ऊंचे स्वर में उस व्यक्ति से पूछा, ‘‘महाराज, आपको तैरना भी आता है कि नहीं?’’

सवारी ने कहा, ‘‘नहीं, मुझे तैरना नही आता।’’

फिर तो आपको अपने इतिहास, भूगोल को सहायता के लिए बुलाना होगा वरना आपकी सारी उम्र बरबाद होने वाली है क्योंकि नाव अब भंवर में डूबने वाली है।’’ यह कहकर नाविक नदी में कूद तैरता हुआ किनारे की ओर बढ़ गया।

अतः मनुष्य को किसी एक विद्या या कला में दक्ष हो जाने पर अभिमान  नहीं करना चाहिए।

Roger Bannister (रोजर बैनिस्टर)

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           कई दशकों तक सभी यह मानते रहे कि कोई भी व्यक्ति 4 मिनट में 1 मील नहीं दौड़ सकता. लोगों ने कहा, “ऐसा हो ही नहीं सकता”! वैज्ञानिक और चिकित्सकों ने मानव शरीर की सीमाओं और क्षमताओं का आकलन करके यह बताया कि 4 मिनट में 1 मील दौड़ पाना संभव नहीं था. उनके अनुसार इसके लिए उपयुक्त गति तक पहुँचने से पहले ही शरीर धराशायी हो जाता. सभी ने यह मान लिया : 4 मिनट में 1 मील दौड़ना असंभव है.
लेकिन सबको इस बात पर यकीन नहीं था. 4 मिनट में 1500 मीटर (एक मील में 1600 मीटर होते हैं) दौड़ने का रिकार्ड तोड़ने के बाद रोजर बैनिस्टर को यह लगने लगा कि वह ऐसा कर सकता है. उसने अपने मन में यह ठान लिया कि वह 4 मिनट में 1 मील दौड़कर दिखाएगा. उसके आत्मविश्वास ने ही असंभव को संभव कर दिखाया. उसने यह रिकार्ड बनाने की दिशा में प्रयत्न करना शुरू कर दिया.
और 6 मई, 1954 के दिन यह संभव हो गया:
रोजर बैनिस्टर ने यह कर दिखाया. उसने 4 मिनट में 1 मील दौड़कर वह रिकार्ड बना दिया जिसे सब असंभव मानते थे. उसने दुनिया को बता दिया कि ऐसा भी हो सकता है. उसने अपनी दौड़ 3 मिनट और 59.4 सैकंड में पूरी की. इसके 6 हफ्ते बाद ही एक औस्ट्रेलियन जौन लैंड्री ने यह दौड़ 3 मिनट 58 सैकंड में पूरी की. 1957 की समाप्ति से पहले सोलह धावक 4 मिनट से कम में 1 मील दौड़ चुके थे. अब तो हजारों धावक 4 मिनट में 1 मील दौड़ चुके हैं. कुछ धावक तो हर दिन अभ्यास दौड़ में ऐसा कर लेते हैं. इस दौड़ का विश्व रिकॉर्ड मोरक्कन धावक हिचाम एल गेरोज़ के नाम है जिसने 7 जुलाई 1999 को 1 मील की दौड़ 3 मिनट 43.13 सेकंड में पूरी की. 1997 में कीनिया के डेनियल कोमेन ने 8 मिनट से कम में 2 मील की दौड़ पूरी की.

    आपके जीवन का वह कौन सा लक्ष्य है जिसे सभी असंभव मानते हैं? लोग बहुत सी बातें करते होंगे और आपको बताते होंगे कि आप यह नहीं कर सकते या वह नहीं कर सकते. उनकी बातें सुनकर शायद आप भी वही मानने लगे होंगे. हो सकता है आपने जीवन में कभी कोई लक्ष्य बनाए हों जिन्हें आपने बीच रस्ते ही छोड़ दिया या उनकी राह में पहला कदम भी नहीं बढ़ाया.आपका लक्ष्य कोई सेल्स टार्गेट भी हो सकता है और किसी ख़ास हुनर में कामयाबी पाना भी. आपका ’4 मिनट में 1 मीलकोई ऐसी चीज़ हो सकती है जिसे बहुत से लोग पहले ही कर चुके हैं, लेकिन आप अभी भी इसे असंभव मानते हैं. आपको यह जान लेना है कि यह लक्ष्य असंभव नहीं है और आप यह कर सकते हैं. आप भी अपना ’4 मिनट में 1 मीलपूरा कर सकते हैं.
                                                            

Monday 19 March 2012

लालबहादुर शास्त्री

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छः साल का एक लड़का अपने दोस्तों के साथ एक बगीचे में फूल तोड़ने के लिए घुस गया। उसके दोस्तों ने बहुत सारे फूल तोड़कर अपनी झोलियाँ भर लीं। वह लड़का सबसे छोटा और कमज़ोर होने के कारण सबसे पिछड़ गया। उसने पहला फूल तोड़ा ही था कि बगीचे का माली आ पहुँचा। दूसरे लड़के भागने में सफल हो गए लेकिन छोटा लड़का माली के हत्थे चढ़ गया।
बहुत सारे फूलों के टूट जाने और दूसरे लड़कों के भाग जाने के कारण माली बहुत गुस्से में था। उसने अपना सारा क्रोध उस छः साल के बालक पर निकाला और उसे पीट दिया।
नन्हे बच्चे ने माली से कहा – “आप मुझे इसलिए पीट रहे हैं क्योकि मेरे पिता नहीं हैं!”
यह सुनकर माली का क्रोध जाता रहा। वह बोला – “बेटे, पिता के न होने पर तो तुम्हारी जिम्मेदारी और अधिक हो जाती है।”
माली की मार खाने पर तो उस बच्चे ने एक आंसू भी नहीं बहाया था लेकिन यह सुनकर बच्चा बिलखकर रो पड़ा। यह बात उसके दिल में घर कर गई और उसने इसे जीवन भर नहीं भुलाया।
उसी दिन से बच्चे ने अपने ह्रदय में यह निश्चय कर लिया कि वह कभी भी ऐसा कोई काम नहीं करेगा जिससे किसी का कोई नुकसान हो।
बड़ा होने पर वही बालक भारत के स्वतंत्रता प्राप्ति के आन्दोलन में कूद पड़ा। एक दिन उसने लालबहादुर शास्त्री के नाम से देश के प्रधानमंत्री पद को सुशोभित किया।



 

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स्वाभिमानी बालक
किसी गाँव में रहने वाला एक छोटा लड़का अपने दोस्तों के साथ गंगा नदी के पार मेला देखने गया। शाम को वापस लौटते समय जब सभी दोस्त नदी किनारे पहुंचे तो लड़के ने नाव के किराये के लिए जेब में हाथ डाला। जेब में एक पाई भी नहीं थी। लड़का वहीं ठहर गया। उसने अपने दोस्तों से कहा कि वह और थोड़ी देर मेला देखेगा। वह नहीं चाहता था कि उसे अपने दोस्तों से नाव का किराया लेना पड़े। उसका स्वाभिमान उसे इसकी अनुमति नहीं दे रहा था। उसके दोस्त नाव में बैठकर नदी पार चले गए। जब उनकी नाव आँखों से ओझल हो गई तब लड़के ने अपने कपड़े उतारकर उन्हें सर पर लपेट लिया और नदी में उतर गया। उस समय नदी उफान पर थी। बड़े-से-बड़ा तैराक भी आधे मील चौड़े पाट को पार करने की हिम्मत नहीं कर सकता था। पास खड़े मल्लाहों ने भी लड़के को रोकने की कोशिश की।
उस लड़के ने किसी की न सुनी और किसी भी खतरे की परवाह न करते हुए वह नदी में तैरने लगा। पानी का बहाव तेज़ था और नदी भी काफी गहरी थी। रास्ते में एक नाव वाले ने उसे अपनी नाव में सवार होने के लिए कहा लेकिन वह लड़का रुका नहीं, तैरता गया। कुछ देर बाद वह सकुशल दूसरी ओर पहुँच गया।
उस लड़के का नाम था ‘लालबहादुर शास्त्री’।
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Sunday 18 March 2012

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